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यूपी चुनाव में हर सीट पर 54000 वोटों का नुकसान होगा, अखिलेश यादव ने गणित भी बताया

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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी भले ही दो साल का समय है लेकिन इसे लेकर दावे और वार-पलटवार जबरदस्त तरीके से चल रहे हैं। लोकसभा चुनाव में शानदार सफलता हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी उसी रणनीति पर काम करते हुए भाजपा को पछाड़ने के दावे कर रही है। लोकसभा चुनाव से पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सिपाही भर्ती परीक्षा लीक को मुद्दा बनाया और बताया था कि हर लोकसभा सीट पर भाजपा को कितने वोटों का नुकसान होगा। अब 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर अखिलेश ने उसी तरह का दावा करते हुए बताया कि हर सीट पर भाजपा को 54000 वोटों का नुकसान होगा। इसका पूरा गणित भी अखिलेश यादव ने समझाया है।

दरअसल यूपी की योगी सरकार ने एक दिन पहले एक्स पोस्ट करते हुए ऐलान किया था कि अगले मार्च तक प्रदेश में एक लाख 93000 शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। कुछ घंटे बाद इस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया। भर्ती के ऐलान और पोस्ट को डिलीट करने को ही अखिलेश ने मुद्दा बना लिया। उन्होंने एक्स पर लिखा कि 1 लाख 93000 शिक्षक भर्तियों के जुमलाई विज्ञापन से जन्मा 2027 के चुनाव में भाजपा की हार का राजनीतिक गणित। आगे गणित को विस्तार से अखिलेश यादव ने समझाया है।

अखिलेश ने कहा कि मान लिया जाए कि 1 पद के लिए कम-से-कम 75 अभ्यर्थी होते तो 1 लाख 93000 पदों पर यह संख्या 1 करोड़ 44 लाख 75000 होती। एक अभ्यर्थी के साथ यदि केवल उनके अभिभावक जोड़ लिए जाएं तो कुल मिलाकर 3 लोग इससे प्रभावित होंगे अर्थात ये संख्या 4 करोड़ 34 लाख 25000 हो जाएगी।

⁠ये सभी व्यस्क होंगे अतः इन्हें 4 करोड़ 34 लाख 25,000 मतदाता मानकर अगर उप्र की 403 विधानसभा सीटों से विभाजित कर दें तो ये आंकड़ा लगभग 1 लाख 8000 वोट प्रति सीट का आएगा। भाजपा 50 प्रतिशत वोटर्स का का जुमलाई दावा करती है तो लगभग 1 लाख 8000 का आधा मतलब हर सीट पर 54,000 वोटों का नुक़सान भाजपा को होना तय है। ⁠इस परिस्थिति में भाजपा 2027 के विधानसभा चुनावों में दहाई सीटों पर ही सिमट जाएगी।

लोकसभा चुनाव में यही गणित रहा सफल

अखिलेश ने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले पुलिस भर्ती के मामले में ‘भर्तियों का ये गणित’ भाजपा को उप्र में लगभग आधी सीटों पर हारने में सफल भी रहा है, अत: ऐसे आंकड़ों को अब सब गंभीरता से लेने लगे हैं। अब ये मानसिक दबाव का नहीं वरन सियासी सच्चाई का आंकड़ा बन चुका है।

आंकड़ां सामने आते ही भाजपा में मचेगी भगदड़

अखिलेश ने आगे कहा कि जैसे ही ये आंकड़ा प्रकाशित होगा और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भाजपाई प्रत्याशियों के बीच जाएगा वैसे ही उनका राजनीतिक गुणा-गणित टूट कर बिखर जाएगा और विधायक बनने का उनका सपना भी। इससे भाजपा में एक तरह से भगदड़ मच जाएगी। ऐसे में भाजपा को मतदाता ही नहीं बल्कि प्रत्याशियों के भी लाले पड़ जाएँगे।

बोले- और भी हैं कारण

अखिलेश ने आगे लिखा कि वैसे भी कुछ निम्नांकित उल्लेखनीय कारणों से भाजपा सरकार के विरोध में उप्र की जनता पूरी तरह आक्रोशित है और भाजपा को 2027 के चुनाव में बुरी तरह से हराने और हटाने के लिए पूरी तरह कमर कस के तैयार है। इसे लेकर एक लिस्ट भी अखिलेश ने बताई है। कहा कि – किसानों-मज़दूरों की बेकारी, युवाओं की बेरोज़गारी, परिवारवालों के लिए खानपान, दवाई, पढ़ाई, पेट्रोल-डीज़ल और हर चीज़ की महंगाई, महिलाओं का अपमान और असुरक्षा, हर काम में भ्रष्टाचार, पीडीए का उत्पीड़न और उन पर अत्याचार, भाजपा में डबल इंजन की टकराहट, भाजपा राज में ‘सत्ता सजातीय’ पक्षपात, भाजपा में दो फाड़, भाजपा राज में कमीशनखोर अधिकारियों को बचाने की साज़िश, सच्चे अधिकारियों के परिवारों पर व्यक्तिगत हमला, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों पर एफ़आइआर और उनकी गिरफ़्तारी, विपक्ष पर झूठे मुक़दमे, झूठे एनकाउंटर का डर।

इसके अलावा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग, पुलिस का भ्रष्टीकरण, शिक्षक, शिक्षामित्र, आशा, आंगनबाड़ी, सहायिका, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की उपेक्षा और अवहेलना, खरबपतियों के फ़ायदे के लिए नियम-क़ानूनों को तोड़ना मरोड़ना, छोटे दुकानदारों, व्यापारियों, कारोबारियों, कारखानेवालों का जीएसटी के नाम पर शोषण और वसूली, वर्क-लाइफ़ बैलेंस बिगाड़कर एम्प्लॉयीज़ का शोषण, असुरक्षित क्षेत्र में अस्थायी काम करनेवाले डिलीवरी पर्सन, ड्राइवर या अन्य को कोई भी सामाजिक सुरक्षा न मिलना, बीमा पर टैक्स वसूलना, जनता की बचत पर मिलनेवाले ब्याज का कम होना और उस पर भी टैक्स वसूलना, कलाकारों की अभिव्यक्ति पर डर की तलवार और स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों, जल व विद्युत आपूर्ति की दुर्दशा और लगातार बढ़ते बिल…।

सांप्रदायिक राजनीति का फार्मूला पहले ही फेल

अखिलेश ने कहा कि इन जैसे न जाने कितने मुद्दे हैं, जो भाजपा के विरुद्ध जनता में आक्रोश का उबाल ला चुके हैं। उप्र में लोकसभा की पराजय के बाद भाजपा का सारा सियासी समीकरण और साम्प्रदायिक राजनीति का फ़ार्मूला पहले ही फ़ेल हो चुका है, विकास के नाम पर इन्होंने सपा सरकार के बने कामों के उद्घाटन का उद्घाटन मात्र किया है। ऐसे में भाजपा के भावी प्रत्याशियों के बीच ये संकट है कि वो जनता के बीच क्या मुंह लेकर जाएं। इसीलिए उप्र में भाजपा 2027 के चुनाव में अपनी हार मान चुकी है और जाने से पहले हर ठेके और काम में बस पैसा बंटोरने में लगी है। इसीलिए उप्र ‘ऐतिहासिक महाभ्रष्टाचार’ के दौर से गुजर रहा है।

अब पीडीए की राजनीति का युग

भाजपा की सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता पर आधारित समाज को लड़ानेवाली बेहद कमज़ोर हो चुकी दरारवादी-विभाजनवादी नकारात्मक राजनीति के मुक़ाबले ‘सामाजिक न्याय के राज’ की स्थापना का महालक्ष्य लेकर चलनेवाली समता-समानतावादी, सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक पीडीए राजनीति का युग आ चुका है। 90% पीड़ित जनता जाग चुकी है और ‘अपनी पीडीए सरकार’ बनाने के लिए कटिबद्ध भी है और प्रतिबद्ध भी। अब सब पीड़ित मिलकर देंगे जवाब, 27 में बनाएंगे अपनी PDA सरकार, पीडीए ही भविष्य है!

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