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राज्य सरकार का हाईकोर्ट से बड़ा सवाल, क्या सरकारी कर्मचारियों को मीडिया से बात करने की इजाजत है?

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राज्य सरकार का हाईकोर्ट से बड़ा सवाल, क्या सरकारी कर्मचारियों को मीडिया से बात करने की इजाजत है?

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC) ने हाल ही में कहा कि केंद्र सरकार सहित सरकारी कर्मचारियों के बीच मीडिया से स्वतंत्र और अनौपचारिक रूप से बात करना एक प्रवृत्ति बन गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर की अध्यक्षता में में दिए गए एक फैसले में विभिन्न रैंकों के सरकारी कर्मचारियों द्वारा मीडिया के साथ फ्री होकर और अनौपचारिक बातचीत करने के बढ़ते चलन पर चिंता व्यक्त की गई है।

राज्य सरकार का हाईकोर्ट से बड़ा सवाल?

इसी के साथ न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने राज्य को यह बताने के लिए कहा कि क्या सेवा नियमों के तहत इसके खिलाफ कोई रोक लगी है? उन्होंने कार्मिक विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे सरकारी कर्मचारियों की युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताएं ताकि नियमों के तहत ऐसा कोई प्रतिबंध मौजूद होने पर वे अचानक मीडिया से बात करने के लिए प्रलोभित न हों।

अदालत एक सरकारी कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता द्वारा मीडिया से कही गई बातों पर टिप्पणी करने से बचते हुए, न्यायालय ने सरकारी अधिकारियों के बीच इस तरह के बढ़ते चलन पर चिंता व्यक्त की।

क्या सरकारी कर्मचारियों को मीडिया से बात करने की इजाजत है?

सिंगल जज की बेंच ने कहा, “इस न्यायालय ने नोटिस किया कि वर्तमान समय में सभी रैंकों के सरकारी कर्मचारियों के बीच लापरवाही से और स्वतंत्र रूप से मीडिया से बात करने की एक सामान्य प्रवृत्ति है। जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक खुलकर मीडिया से बातचीत करते नजर आ रहे हैं। इसी तरह, राज्य के संबंध में कार्यरत सरकारी कर्मचारियों और पदानुक्रम में नीचे सेवारत लोगों के मामले में भी यही स्थिति है।”

उन्होंने आगे कहा कि जब तक पहले से मौजूद आचरण नियमों में बदलाव नहीं किया जाता, तब तक सरकारी कर्मचारियों को मीडिया से अपनी बात कहने की “इस तरह की आजादी” नहीं मिलेगी। कोर्ट ने कहा कि पहले सरकारी कर्मचारियों को मीडिया से खुलकर बात करने की अनुमति नहीं देने का एक कारण यह था कि उन्हें एक ही मुद्दे पर विरोधाभासी रुख के साथ सामने नहीं आना चाहिए। न्यायालय ने जोर देकर कहा, “उसे (राज्य को) एक अधिकृत प्रवक्ता के माध्यम से अपनी बात रखनी चाहिए, वह जनसंपर्क विभाग का कोई व्यक्ति या विशेष प्रतिष्ठान या विभाग का कोई नामित अधिकारी हो सकता है।”

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