सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेगा, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को रद्द कर दिया गया था और इसे “असंवैधानिक” तथा धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन बताया गया था। शीर्ष अदालत ने पांच अप्रैल को उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा था कि फैसले के खिलाफ सात याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे गहन विचार-विमर्श योग्य हैं।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह इन याचिकाओं को अंतिम निपटारे के लिए 13 अगस्त को सूचीबद्ध करेगी। इसने इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में दस्तावेजों के सामान्य संकलन को सुनिश्चित करने के लिए वकील रुचिरा गोयल को नोडल वकील भी नियुक्त किया।
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि राज्य सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका भी दायर की गई है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “क्या हमें इन्हें अगले मंगलवार को अंतिम निस्तारण के लिए सूचीबद्ध करना चाहिए?… एक बार जब हमने स्थगन आदेश दे दिया तो हम इन्हें अंतिम निपटान के लिए सूचीबद्ध कर सकते हैं।” उन्होंने कहा कि निर्णय के लिए मुद्दे एक संकीर्ण दायरे में हैं।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा था, “मदरसा बोर्ड का उद्देश्य और प्रयोजन नियामक प्रकृति का है और इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह कहना प्रथम दृष्टया सही नहीं है कि बोर्ड की स्थापना से धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन होगा।”
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