Sunday, March 9, 2025
Homeअन्य जिलाजिस तमसा के तट पर था महर्षि वाल्मीकि का आश्रम, खतरे में...

जिस तमसा के तट पर था महर्षि वाल्मीकि का आश्रम, खतरे में उसका अस्तित्व

अयोध्या से 18 किलोमीटर की दूरी पर श्रवणाश्रम के निकट बह रही तमसा का अस्तित्व खतरे में है। स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान राम से जुड़ी होने के बावजूद यह पवित्र नदी शासन-प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है।

राम मंदिर बनने के साथ ही अयोध्या जनपद स्थित सभी पौराणिक स्थलों का कायाकल्प हो रहा है। नदियों के तटों को संवारा जा रहा है। उसी अयोध्या से 18 किलोमीटर की दूरी पर श्रवणाश्रम के निकट बह रही तमसा का अस्तित्व खतरे में है। स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान राम से जुड़ी होने के बावजूद यह पवित्र नदी शासन-प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है।

तमसा नदी ऐतिहासिक एवं पौराणिक नदी है जिसका साक्ष्य रधुवंश महाकाव्यम व रामचरित मानस मे भी मिलता है। महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्यम् के 9वें सर्ग के श्लोक संख्या 72 में इस नदी की पवित्रता का वर्णन करते हुए लिखा है कि ‘तपस्विगधं तमसां प्राप नदीं’ अर्थात शिकार के लिए निकले राजा दशरथ ने थकान के बाद ऐसी तमसा नदी को प्राप्त किया जिसमे तपस्वियों ने स्नान किया। इसी तमसा नदी का उल्लेख करते हुए तुलसी दास ने रामचरितमानस मे लिखा है कि ‌‘प्रथम बासु तमसा भयउ दूसर सुरसरि तीर, न्हाइ रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर’। यानी भगवान श्री राम वनगमन के समय पहला निवास तमसा नदी के तट पर किया था, दूसरा गंगातीर पर। सीताजी सहित दोनों भाई उस दिन स्नान के बाद जल पीकर ही रहे।

माता-पिता के लिए जल लेने यहीं आए थे श्रवण कुमार

पौराणिक ग्रन्थों से इस बात का उल्लेख मिलता है कि राजा दशरथ शिकार खेलने तमसा नदी के किनारे पर स्थित जंगलों मे ही जाया करते थे। इस बात की पुष्टि श्रवण कुमार की कथा से भी होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने अन्धे माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के लिए निकले श्रवण कुमार प्यासे माता-पिता की प्यास बुझाने के लिए तमसा नदी मे जल लेने के लिए घड़े को डुबाया। घड़े से निकली आवाज को जंगली जानवर की आवाज समझकर राजा दशरथ ने शब्द-भेदी बाण छोड़ दिया। वह तीर जल लेने गए श्रवण कुमार को लग गया जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इसकी गवाही आज भी विकास खंड मिल्कीपुर की ग्राम सभा देवरिया मे स्थित अंधी-अंधा आश्रम दे रहा है।

तमसा के तट पर था वाल्मीकि आश्रम

वाल्मीकि रचित रामायण में भी तमसा नदी का उल्लेख है। महर्षि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के ही तट पर ही स्थित था। अयोध्या से निर्वासन के बाद मां सीता को तमसा नदी किनारे स्थित इसी आश्रम मे आश्रय मिला था जहां बाद मे लव और कुश का जन्म भी हुआ था। तमसा के तट पर मंदिर और धर्मस्थल अब भी हैं लेकिन अब तमसा की वह पहचान नदारद है। इन पौराणिक कथाओं से एक बात तो स्पष्ट है कि तमसा नदी सदानीरा थी। साथ ही तमसा नदी का जल स्नान-पान के लायक भी था। आज के समय अपना अस्तित्व खोने की कगार पर खड़ी तमसा नदी मे न तो गहराई है, न पर्याप्त पानी और न ही प्रवाह है। शासन प्रशासन व जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण तमसा नदी की पहचान अब एक बरसाती नाला बनकर ही रह गई है। कभी यह नदी कल, कल का नाद करती हुई बहा करती थी। अब यह स्थिति है कि इसका जल आचमन लायक भी नहीं रह गया है। आज यह नदी अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि तमसा को बचाने के लिए यदि जल्द कोई ठोस योजना नहीं बनी तो वह दिन दूर नहीं जब तमसा नदी विलुप्त होकर सिर्फ मान्यता भर बनकर रह जाएगी। इसका उदगम स्थल जिले के अंतिम पश्चिमी छोर पर स्थित मवई ब्लॉक क्षेत्र के बसौड़ी गांव के समीप है। रामायण कालीन ये नदी पहले लोगों के लिये जीवन दायिनी सिद्ध हुआ करती थी। पशु पक्षी इसके शीतल जल को पीकर जहां तृप्त होते थे वहीं धरती के भगवान कहे जाने वाले किसानों के लिये भी इसका जल वरदान साबित था।

वर्ष 2019 में तमसा के उद्धार के लिए हुए थे प्रयास

तमसा नदी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी। वर्ष 2019 अयोध्या जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ अनिल पाठक ने मनरेगा योजना अंतर्गत इसकी खुदाई कराकर इसे अस्तित्व में ले आए। डॉ. अनिल पाठक ने वर्ष 2019 में तमसा नदी की खुदाई का काम शुरू करवाया था, जो लगभग डेढ़ वर्ष बाद जल संरक्षण का बड़ा केंद्र बन गया था। आस-पास की नदी व नहरों के पानी से इसको जोड़ते हुए गिरते भूजल स्तर को रोकने की योजना थी। 23 करोड़ रुपये के खर्च से तमसा नदी अस्तित्व में तो आ गई लेकिन किसी नदी नहर से नहीं जुड़ सकी। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि इस नदी को कल्याणी नदी से जोड़ने की योजना थी। खुदाई भी कुछ दूर तक की गई थी। अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते तमसा कल्याणी से नही जुड़ पाई। डॉ. अनिल पाठक का स्थानांतरण होने के बाद आगे कोई विकास कार्य नहीं हुआ। नदी में जो थोड़ा बहुत जल रहता भी है वो सूर्य के प्रचंड ताप से सूख जाता है। ऐसे में जीव जंतु और किसानों के खेतों की प्यास बुझाने ये नदी असफल हो रही है।

Vinod Maurya
Vinod Maurya
Vinod Maurya has 2 years of experience in writing Finance Content, Entertainment news, Cricket and more. He has done B.Com in English. He loves to Play Sports and read books in free time. In case of any complain or feedback, please contact me @ upbreakingnewshindi@gmail.com
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments